उसे क्या लूटोगे

धर्मस्व विभाग में चपरासी से अधिकारी का लांगकट सफर शार्टकट में तय करने वाले धर्मराज जी किसी फाइल में ध्यान धरे बैठे थे। दो लाख रुपए की बेशकीमती साड़ी पहने और बदन पर गहने की शोरूम खोले पत्नी बोल उठी - ‘सुनते हो बिटिया और मैं खरीददारी के लिए बाहर जा रहे हैं। हाथ में फुटकर पैसे ही हैं। लगता है कम पड़ेंगे।’

‘क्या दस भी बस नहीं होगें।‘ धर्मराज चौंकते हुए बोले।

‘कमाल करते हैं आप। ऐसे कह रहे हैं जैसे आपने खर्च के लिए दस करोड़ दिए हैं। दस लाख ही तो हैं। इतना भला कैसे बस होगा?’

‘अरे भाग्यवान अब ऑफिस का समय हो रहा है। अभी अरेंज करना मुश्किल है।‘ अपनी मजबूरी बताते हुए साहब घड़ी की ओर देखने लगे।

‘भगवान का तो दिया हुआ है। देने में क्या तकलीफ है?’ कहते हुए पत्नी हँस पड़ी।

‘अरे धीरे बोलो। चालक कहीं सुन न ले।‘ मुँह पर अंगुली रखते हुए साहब ने कहा।

‘आप को क्या लगता है कि चालक को कुछ नहीं पता। वह सब जानता है। बस मासूम होने का ढोंग करता है।‘ इतना कहते हुए पत्नी मुस्कुराने लगी।

‘ठीक है। तुम लोग जाओ। कम पड़े तो फोन कर देना।‘ कहते हुए साहब फिर से फाइल में सिर खपाने लगे।

पत्नी और बेटी खरीददारी के लिए निकलते तभी पाँच लोग जबरन भीतर घुस आए। साहब कुछ कहते उन लोगों ने अपना परिचय  ‘एसीबी’ कहकर दिया। साहब की घिग्घी बंध चुकी थी। दिल की धड़कने बढ़ चुकी थी। हाथ-पैर काँपने लगे थे। कुल मिलाकर डरपोक बिल्ली की तरह एक कोने में दुबककर बैठ गए।

एसीबी अधिकारी ने घरवालों के फोन जब्त करते हुए खोजबीन में अड़चन पैदा न करने के सख्त निर्देश दिए। एक ओर खोजबीन में करोड़ों रुपयों की संपत्ति बाहर निकल रही थी उधर दूसरी ओर धर्मराज जी  मन ही मन कहने लगे - खत्म। सब कुछ खत्म हो गया। कल से जेल की रोटी तोड़नी पड़ेगी।

 रुपए गिनने वाले हाथों से अब जेल की सलाखें गिननी पड़ेंगी।’ वह अपने में तिल-तिल होकर रो रहे थे कि पत्नी कहने लगी - छीः-छीः। मुझे आप पर शर्म आती है। अब अपनी सहेलियों को क्या मुँह दिखाऊँगी। किटी पार्टी में जाने लायक नहीं छोड़ा। तभी मैनेजमेंट कोटा में डेढ़ करोड़ देकर मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने वाली बेटी पिता को धिक्कारने लगी- ‘दोस्तों में अब मेरी क्या इज्जत रहेगी। डैड यू स्पाइल्ड एव्रीथिंग। शेम ऑन यू।‘

एसीबी अधिकारियों ने कहा – ‘तुम लोग अपना रोना बाद में रोना। पहले यह बताओ घर की तलाशी लेने पर मात्र दस करोड़ की रिकवरी हुई है। जबकि हमें सूचना सौ करोड़ की मिली है।‘

किसी ने कुछ जवाब नहीं दिया। साहब के चालक ने एसीबी के अधिकारियों से कहा – ‘यहीं से कुछ दूरी पर एक अनाथाश्रम है। वहीं धर्मराज जी की माँ रहती हैं। शायद उनसे कुछ जानकारी मिल जाए।‘

एसीबी अधिकारी अनाथाश्रम पहुँचे। पहुँचने पर पता चला कि धर्मराज जी की माँ उन्हें यह कहते हुए हमेशा कोसती थी कि भगवान के पैसे खाने वाला किसी न किसी दिन उसके हत्थे चढ़ता ही है। इन्हीं तानों के चलते उसने उन्हें यहाँ छोड़ दिया है। एसीबी अधिकारियों ने देखा कि धर्मराज जी ने माँ के लिए एक ऐसा पलंग बनवाया था जिसमें न दिखाई देने वाला अजीबोगरीब बक्सा है। 

अधिकारियों ने उसमें से बाकी के नब्बे करोड़ तक की संपत्ति रिकवरी कर ली। उस समय माँ भगवतगीता बाँच रही थी और जिसका वह वाला पन्ना बड़े जोर से फड़फड़ा रहा था जिसमें लिखा था – यहाँ हर कोई खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार