देख भोले की मुस्कानें

मन ही मन में मेरे भोले,

मन का साज बजाते हैं,

राग भले हो चाहें कैसा,

मन बस में कर जाते हैं।

मन ही मन में .....

बिछड़ रही हैं श्वांसें पल-पल,

जीवन में रंग लाते हैं,

मेरे भोले इतने भोले,

सब दुख-दर्द मिटाते हैं।

मन ही मन में ....

कोई कहता मन से सुंदर,

कोई कहता तन से सुंदर,

मेरे भोले तो अनुपम हैं,

जित देखो उत सुंदर-सुंदर।

मन ही मन में ....

मन में ना कहीं बैर उपजता,

और ना ही कहीं कटुता बहती,

देख भोले की मुस्कानों को,

गंगा भी कल-कल -सी बहती।

मन ही मन में ....

आओ शीत की शीतलता में,

भोले से कुछ बात करें,

जीवन तो चलता रहता है,

मुस्कानें की बात करें।

मन ही मन में ....

(139 वां मनका)


कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'

गांधीनगर, इन्दौर (म.प्र.)