दुनियाँ की सबसे बड़ी औद्धोगिक त्रासदी “भोपाल गैस त्रासदी” के हुए 39 साल, आज भी उस जहरीली भयंकर रात और डरावना दिन को याद करके सिहर जाते है लोग !
दुनिया की सबसे बड़ा व भयानक ओद्धौगिक त्रासदी जिसने चंद घंटों में ही हजारो लोगो की जान लील दिया था, कहने को तो आज इस घटना के 39 वर्ष हो हो चुके है परन्तु इस भयानक मंजर को याद करें तो आज भी सभी का दिल दहल जाता है l 2-3 दिसम्बर 1984 की रात लोगों के लिए एक मौत का मंजर लेकर आया था उस रात हवा में मौत बह रही है जो उस हवा के संपर्क में आये मौत उसे पल में आपने आगोश में लेने को आतुर थी ।
आज भी वह खौफनाक रात को याद कर सिहर जाते है लोग ! जी हाँ मैं उस त्रासदी के बारे में ही बताने जा रहा हूँ दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में इतिहास के पन्नो में दफन है । इस मंजर को याद करने से लगता है जैसे उस रात मौत का कहर लोगो को ग्रास बनाने के लिए लोगो के पीछे दौड़ रहा था ।
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें, कहाँ जाए किससे सहायता मांगें। बस लोग अपनी जान बचाने के लिए दौड़े जा रहे थे और जहरीली गैस की चपेट में आकर अपना दम तोड़ते जा रहे थे । उस काली रात ने लोगो के जीवन की साँसे छीन ली थी, जिधर देखो उधर लाशो का ढ़ेर नजर आ रहा था । पशु-पक्षी, मनुष्य सब के सब लाशो के ढेर के रूप में दिखाई दे रहे थे । ऐसा लग रहा था जैसे यहाँ मौत का तांडव चल रहा हो। उस रात जहरीली हवा के संपर्क में आने वाला कोई भी इस कहर से अछूता न रह पाया । सब के सब किसी न किसी प्रकार से उसके प्रभाव में आये हुए थे ।
मौत के इस हवा ने यूनियन कार्बाइड नामक फैक्ट्री के पास की झुग्गी-बस्ती को सबसे पहले अपना शिकार बनाई, यहाँ काम की तलाश में दूर-दराज गांव से आकर लोग रह रहे थे। इन झुग्गी-बस्तियों में रह रहे कुछ लोग तो नींद में ही मौत का ग्रास बन गये । जब गैस धीरे-धीरे लोगों को घरों में घुसने लगी, तो लोग घबराकर बाहर आए, लेकिन यहां तो हालात और भी ज्यादा खराब थे। किसी ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया, तो कोई हांफते-हांफते ही मर गया। कोई इस तरह के मंजर से डरकर ही अपनी जगह से उठ नहीं पाए, कोई भी इस तरह के हादसे के लिए कोई तैयार नहीं था।
जैसे-जैसे रात बीत रही थी, अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टरों को ये मालूम नहीं था कि हुआ क्या है? और इसका इलाज कैसे करना है? उस समय किसी की आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, तो किसी का सिर चकरा रहा था और सांस की तकलीफ तो सभी को थी। जबकि, कइयों की लाशें तो सड़कों पर ही पड़ी थीं। रेल्वे स्टेशन एवं बस स्टैंड में लोगो का ढेर लगा हुआ था । किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करें।
इस गैस त्रासदी को 39 साल हो चुके हैं, आइये जानते है क्या हुआ उस भयंकर काली रात को जिसने हजारों लोगों को पल में मौत का ग्रास बना डाला । भोपाल में 2-3 दिसम्बर 1984 यानी आज से 39 साल पहले दर्दनाक हादसा हुआ था ।
इतिहास में यह “भोपाल गैस कांड” या “भोपाल गैस त्रासदी” के नाम से दफन है है, भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना मानी जाती है । 2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल स्थित कीटनाशक बनाने वाली “यूनियन कार्बाइड नामक” कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस “मिथाइल आइसोसायनाइड” का रिसाव हुआ, दरअसल यहां पर प्लांट को ठंडा रखने के लिए मिथाइल आइसोसायनाइड नाम की गैस को पानी के साथ मिलाया जाता था लेकिन उस रात इसके कॉन्बिनेशन में गड़बड़ी हो गई और पानी लीक होकर टैंक में पहुंच गया। इसके बर्फ प्लांट के 610 नंबर टैंक में तापमान के साथ प्रेशर बढ़ गया। इसके बाद गैस रिसाव तेजी से होने लगा। देखते ही देखते हालात बेकाबू हो गए और जहरीले के पूरे भोपाल शहर में फैल गई।
यह गैस हवा के साथ मिलकर आसपास के इलाकों में फैल रही थी। इसके बाद भोपाल में लाशों के ढेर लग गए । अस्पतालों पर मरीजों की लंबी लाइन लग गई। l बताते हैं कि उस समय फैक्ट्री का अलार्म सिस्टम भी घंटों तक बंद रहा था, जबकि उसे बिना किसी देरी के ही बजना था। जैसे-जैसे रात बीत रही थी, अस्पतालों में भीड़ बढ़ती जा रही थी, लेकिन डॉक्टरों को ये मालूम नहीं था कि हुआ क्या है? और इसका इलाज कैसे करना है?
एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ दो दिन में ही 50 हजार से ज्यादा लोग इलाज के लिए पहुंचे थे। जिससे लगभग 15,000 लोगों की जान गई और कई लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं । सरकारी आंकड़ों के अनुसार भोपाल गैस त्रासदी में कुल 3787 मौतें हुई थीं। लेकिन गैस कांड के अगले तीन-चार दिन में हुए अंतिम संस्कारों के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते नजर आते हैं। गैस कांड के बाद वन विभाग के डिपो से दाह संस्कारों के लिए इतनी लकडिय़ां गई थीं जिनसे पांच हजार से अधिक अंतिम संस्कार कर दिए जाएं।
यह संख्या तो केवल दाह संस्कारों की है, इसके अतिरिक्त अन्य तरीकों से हुए शवों के अंतिम संस्कारों को जोड़ दें तो यह आंकड़ा सरकारी आंकड़ों से दोगुने से कहीं ज्यादा नजर आता है । इस हादसे का मुख्य आरोपी था वॉरेन एंडरसन, जो इस कंपनी का सीईओ था। 6 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर को उन्हें सरकारी विमान से दिल्ली भेजा गया और वहां से वो अमेरिका चले गए। इसके बाद एंडरसन कभी भारत लौटकर नहीं आए। कोर्ट ने उन्हें फरार घोषित कर दिया था।
गैस लीक होने के 8 घंटे बाद भोपाल को जहरीली गैस के असर से मुक्त मान लिया गया था, लेकिन 1984 में हुई इस दुर्घटना से मिले जख्म 39 साल बाद भी भरे नहीं हैं। इस फाइल को भी किसी रद्दी कागजों की फाइल में किसी कोने में दफना दिया गया होगा । किन्तु आज भी उस हादसे के प्रभाव में आये लोग जो किसी तरह बच गए थे आज भी पथराई आँखों से न्याय का इंतजार कर रहे है और इस प्रकार का हादसा भविष्य में कभी न हो, इसका उचित प्रबंध किया जाये एवं गैर जिम्मेदारों पर शिकंजा कसा जाये।
बेशक यह एक बहुत बड़ा औद्योगिक हादसा था, लेकिन जिस तरह का वायु प्रदूषण और उसके भीषण प्रभाव उसने भोपाल के पर्यावरण पर छोड़ा । यह गैस भोपाल के तालाबों के पानी और वहां की हवा में लंबे समय तक मिली रही और आज 39 साल बाद भी इसका असर दिखाई देता है । उस हादसे में बचे लोगों की सेहत पर ऐसे असर हुए और उन्हें कैंसर और अन्य तरह की ऐसी बीमारियां हुईं जिसकी वजह से उनका इलाज मरते दम तक चला और आज बचे लोगों का इलाज आज भी चल रहा है ।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामजिक कार्यकर्ता, भोपाल (मध्यप्रदेश)
मोबाइल - 9893573770