उजाले का प्रतीक।

अंधेरे से उजाला,

सहर्ष स्वीकार है

दीपावली पूजन,

एक आभार है।

टूटती श्रृंखलाएं में,

उजाले का अवतार है।

जन-जागरण लाना,

इसका व्यवहार है।

पत्थर हो गई मन की भावनाएं,

दिल को कचोटती है।

उन्नत खोज और प्रयोग से,

हमेशा सम्हलकर रहने में,

सबसे पहले खड़ी होकर,

हम-सब में जागृति भर कर,

खुशियां और अत्यंत सुकून,

देने वाली ताकत बनकर,

खुशबू भरी खुशियां देती है।

व्यावसायिकता पर प्रहार है,

उन्नत खोज और प्रयोग में प्रचूर,

दिखता सुन्दर श्रंगार है।

आओ हम-सब मिलकर,

उजाले के प्रतीक को,

अन्तर्मन से जलाएं।

मायूसी से सनी हुई,

संसार में उजाले का प्रतीक बनकर,

समग्र रूप में ज्योति पुंज बनकर,

हर्ष और उल्लास से,

सनी हुई दुनिया को बसाएं।

डॉ० अशोक,पटना, बिहार।