रवि को रोशनी से,
चांद को चांदनी से,
सुमन को सुगंध से,
नीरद को नीर से
अलग नही किया जा सकता।
वैसे ही मेरे हृदय को,
कान्हा से अलग नही किया जा सकता।
रज को रेणु से,
समीर को शीतलता से,
शब्दों को वर्णों से,
छ्न्दों को रसों से,
अलग नही किया जा सकता।
वैसे ही मेरे हृदय को ,
कान्हा से अलग नही किया जा सकता।
स्वर को ध्वनि से,
दीये को बाती से,
हृदय को स्पंदन से,
कीर्ति की कृष्ण से,
अलग नही किया जा सकता।
वैसे ही मेरे हृदय को,
कान्हा से अलग नही किया जा सकता।
गरिमा राकेश गौतम 'गर्विता'
कोटा,राजस्थान।