किस्मत का लिखा हुआ
अक्सर होकर रहता है
इंसान न जाने कहां-कहां
फिर भी भटकता रहता है
पल में ही बन गया यहां
राजा श्मशान का चांडाल
रानी तारावती को कुएं की
पनिहारिन बनना पड़ता है
जनकनंदिनी राम की प्रिया
फूलों पर रहते थे जिनके पांव
किस्मत का तमाशा देखिए
वन में भटकना पड़ता है
हाथों की लकीरों में किस्मत
हम अपनी ढूंढ़ा करते हैं
ऊपर वाले की मर्जी पर ही
सब कुछ निर्भर करता है
अपनी चाल निरंतर चलता
न किसी के आगे झुकता
धन दौलत और शोहरत यह
संग लेकर आता जाता है
स्वरचित एवं मौलिक
अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश