पकौड़े तलने से बड़ा कोई धंधा नहीं होता

"हर जगह फोकट की रबड़ियाँ बट रही हैं और आप अभी भी ईमानदारी की पिपुड़ी बजा रहे हैं। आप नेता हैं कि पैजामा। यहाँ झूठ बोलना पड़ता है। जनता को विकास का विएफएक्स दिखाकर झोली में उतारना पड़ता है। बड़े चले ईमानदार बनने। आप तो डूबेंगे ही डूबेंगे बतौर कार्यकर्ता हमें भी ले डूबेंगे सनम!!" कार्यकर्ता का अंदाज ऐसा था कि उसने मानो ईमानदार नेता जी को रंगे हाथों पकड़ लिया। मनमोहक हंसी के अतिरिक्त नेता जी हँसकर कर ही क्या सकते थे? 

कार्यकर्ता ने आगे कहा- “ईमानदारी की पिपुड़ी बजाने का मतलब यह नहीं कि शराफत दिखाने लगो। यहाँ छल, कपट, धूर्तता, पाप सब करने और दिखाने पड़ते हैं। आप भगवद गीता के दर्शन की तरह खाली हाथ वाले फार्मुले का अनुसरण मत कीजिए। यह जनता है जनता। सब जानती है। यह न कभी खाली हाथ थी, न है और न रहेगी। यह कल प्रचार करने के लिए जो पार्टी आयी थी उससे लिया, आज जो दूसरी पार्टियाँ आ रही हैं उससे ले रही हैं और कल जो पार्टियाँ आयेंगी उनसे भी लेंगी। वे लेने, बटोरने और किसे वोट देना है उस मामले में बड़े क्लियर हैं। 

जो क्लियर नहीं हैं वह हम और मीडिया हैं। हमेशा से चूना हमें ही लगता है। आगे देखो, पीछे देखो. ऊपर देखो, नीचे देखो, दाएँ देखो, बाएँ देखो और धोखा वहीं से खाओ जहाँ बार-बार देखकर खुद को बड़ा निश्चिंत पाओ। यहाँ दिखने से ज्यादा नहीं दिखने वाली चीज़ों पर बड़ा ध्यान देना पड़ता है। यही नीति है, यही मंत्र है, इसी में छिपा है जीतने का रहस्य। इससे पहले कि जनता हमें धोखा दे उससे पहले हमें उसे धोखा देना आना चाहिए। यहाँ मेहनत से नहीं धोखे से जीता जाता है। इस कला के प्रति प्रेम का अर्थ है सफलता की सच्ची गारंटी।”

नेता जी कार्यकर्ता के प्रेरक वचनों से इतने प्रेरित हो गए कि उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने कहा  “हम एक नई व्यवस्था कर सकते हैं। लोगों को जितनी रबड़ी बाँटनी होगी बाँट देंगे। उन्हें वोट देने के झंझट से सदा के लिए मुक्ति दे दी जाएगी। उन्हें यह जानकर खुशी होगी कि नये लोकतंत्र में कोई चुनाव नहीं होगा। तब विरोध की क्या जरूरत? बेकार की भागमदौड़। सिर्फ रबड़ी बाँट तमाशा देख वाली रणनीति शानदार रहेगी। अगर जरूरत पड़ी तो हम संसद की शोभा बढ़ाने के लिए चुनाव की संभावनाओं पर बिजूका भी भेज सकते हैं। और इन्हें चीन से मंगाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी।

 हमारे यहाँ जीभ रखने वाले पैदा ही कहाँ होते हैं। सब के सब बिजूके पैदा होते हैं। वाद-विवाद की जगह भजन-कीर्तन होगा और देश में बिजूका ऊर्जा का संचार होगा। यदि हर कोई बिजूका बनेगा तो उनके यहाँ ईडी, सीआईडी भेजने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मैंने देखा है कि जनता चुनाव को लेकर तनावग्रस्त रहती है। उसे भी इस तनाव से मुक्त हो जाएगी कि किसे वोट दें और किसे नहीं। देश मजबूत हाथों में है, यह बात मीडियाई बिजुकाओं के माध्यम से सभी में प्रसारित करवा दिया जाएगा। तब हमारा कोई प्रिय या अप्रिय नहीं होगा।

हाँ, मैं जानता हूँ कि जनता बेरोज़गारी के दबाव में रोती रहती है। उनकी बुद्धि अल्प भी है और क्षणिक भी, कोई उनकी बातों बातों से प्रभावित न हो उसके लिए उन्हें अच्छे दिनों वाला कैप्सुल दे दिया जाएगा। इस कैप्सुल को खाते ही सब अंधभक्त बन जायेंगे। उन्हें महंगी चीज़ें भी सस्ती लगने लगेंगी। वे सामने से कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार से गुहार लगायेंगे। यहाँ कीमतों का बढ़ना अच्छे दिनों का प्रतीक कहलाएगा। जितनी अधिक महंगाई होगी जनता स्वयं को उतनी सुखी महसूस करेगी। आगे चलकर यही जनता विपक्षी दलों से कहने लगेगी कि गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी जरूरत की चीजें खरीद रहा है, खा रहा है और पी रहा है।

 भीड़ बड़े मजे से भजन-कीर्तन में लगी रहेगी और यह छाती पीटने और उनके आनंद में खलल पैदा करने वाला प्रतीत होगा। हर किसी के हाथ में डाटा दे दिया जाएगा, हर कोई अपनी-अपनी खुजलाने में व्यस्त रहेगा। ऐसे में किसके पास समय रहेगा। हम उन्हें बेरोजगार नहीं बेकार बना देंगे। उन्हें खुद रोजगार माँगने में शर्म आने लगेगी। तब कहाँ का विरोध प्रदर्शन और कहाँ के काले झंडे। हर कोई मजे कर रहा होगा। 

किसी को कोई शिकायत नहीं होगी। हर सप्ताह एक विश्वविद्यालय और हर दूसरे दिन एक आईआईटी कॉलेज खोल दिया जाएगा। चूँकि इतने विश्वविद्यालयों और आईआईटियों के लिए जमीन कम पड़ जाएगी इसलिए सपनों और झूठे वादों में खोल दिए जायेंगे। जहाँ तक दो-चार ईमानदार आवाज़ उठाने वाले बचेंगे उनका मुँह चुप कराने के लिए कि...कि....किरण खसखसखान का प्रोमो चलवा दिया जाएगा कि मेरी अम्मी जान अक्सर कहा करती थी कि कोई धंधा छोटा नहीं होता और पकौड़े तलने से बड़ा कोई धंधा नहीं होता। सरकारी डिग्रियाँ सड़े हुए टमाटरों के सस्ते भाव में थोक बेचे जायेंगे। तब सच्चे अर्थों में विकास झूम-झूमकर सबके आंगन में नाचेगा।”

कार्यकर्ता नेता जी के उपाय को सुनकर खुशी से झूमने लगा।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657