चिराग तू क्यों जलता दिन रात है?
किस वेदना से उच्छवासित तपता दिन रात है,
गहन तिमिर को भी करता प्रकाशित,
निःस्वार्थ सेवी बन सुलगता दिन रात है।
दिग्भ्रान्त करता निशा की झंझा गहरी,
स्वयं बन जाता तू लघु आलोकित प्रहरी।
प्रभात के आगमन तक जागता है प्रतिपल,
साँझ दूत तू,तेरी बात सुनहरी।
सजता पूजा की थाली में,दिवाली की जगमग रात है,
विपुल सौरभ फैलाता,नभ तम को करता आत्मसात है।
उम्मीदों का दीपक बन उर में सदा विहँसता,
अस्तित्व स्वयं का मिटा,करता आलोकित वात है।
डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ)