किस विध लूँ मैं तेरी थाह प्रिय,
कैसे समझाऊँ विकल हिय को,
तारक लोचन से सींच नभजल,
इक-टक देखूँ तेरी राह प्रिय...
मीलित कलियों में जकड़ा उर स्पंद,
मधुप तू ले आ आज पराग कण,
या सजा दे मेरी कबरी तू लूँ मैं आह प्रिय,
किस विध लूँ मैं तेरी थाह प्रिय...
मिथ्या इस जग में चहुँ ओर अंधेरा है,
भ्रम के अँधियारों में हिम-उज्ज्वल तू सवेरा है।
बरसाता कंटकित राहों पर तू मधु प्रवाह प्रिय,
किस विध लूँ मैं तेरी थाह प्रिय...
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )