अंधियारे की मिटे कलुषिता,रंज- ओ-गम की शाम ढले।
सौहार्द,प्रेम,भाईचारे का, हर चौखट पर दीप जले।।
आलौकित हर आंगन,देहरी,जीव जगत उल्लासित हो,
पनियाली पलकों पर प्रतिपल,उम्मीदों के ख़्वाब पलें।
अपनत्व की आब बिखेरे, दीपशिखा विश्वास की,
प्रखर ज्योति पथ प्रदर्शक बनती,कर्मठता की छांव तले।।
जलता है निष्काम भाव से, परोपकार इक ध्येय रहा,
दीपक के निस्वार्थ कर्म से,आओ लेकर सीख चलें।।
संस्कारों से समृद्ध हृदय हो, यही कामना "नीलम" की,
धन- धान्य,ऐश्वर्य, वल्लरी, निशि-दिन यूं ही फूले-फले।।
नीलम मुकेश वर्मा
झुंझुनू राजस्थान