मानव की मानवता हो रही शर्मसार,
देखो लोग मना रहा दीपों का त्योहार ।
प्रजापति बना रहे दीप माटी के,
बैठे है खाली दूकान लगा के।
लाचार गरीब सो रहा घर में भूखा,
हम जला रहे गली गली पटाखा।
दौलत वालों को कमाना है दौलत,
किसी को चाहिए नाम और शोहरत।
लगा रहें चिंगारी फूँक रहे बारूद का ढेर ,
घर-घर में भाई से है भाई का बैर।
माॅ-बाप बैठ अनाथाश्रम में,
देख रहे भाग्य का लेखा-जोखा।
बच्चे कर रहे किट्टी पार्टी,
छोड रहे फुलझडी और पटाखें।
बाजार में धंदा चल रहा मंदा,
सुने घर में ढूँढ रहा बाप फाँसी का फंदा।
किसान रो रहा अपने भाग्य पर,
जोत खेत बहा पसीना खाता रूखी-सूखी।
बाजार में लग रहे विज्ञापन बडे-बडे,
दिवाली धमाका एक हजार की क्रय पर 50% छूट।
मध्यमवर्गीय का भाग्य गया उससे रूठ,
आमदनी अठन्नी खर्च हो रहा रूपैया।
पत्नी को चाहिए भारी साडी बेटी को सूट,
बेटा मांगता पाॅकीट-खर्च नई मोटरगाड़ी।
घर में फैला रहता सन्नाटा और अंजानी शांति,
कर खर्च अनाप-शनाप अग्रसर हो रहे प्रगति पथ पर।
बारूद का उड़ा धुआँ कर रहे पर्यावरण दूषित ,
होते बीमार चिकित्सक लेते तगडी फीस।
नेताओ की बात कुछ और है इनका ना कोई ठौर है,
खाकर फोकट कहते हमारे साथ जनता का प्यार है।
घर मे माॅ-बाप और भाई से भाई को प्यार नहीं,
देखो नेता बडे कर्तबगार है जनता को इनसे प्यार है।
चुनाव का माहोल है नेताओ का त्योहार है,
कौन जाने कब कहाँ दिवाली का त्योहार है।
चुनावी बाजार में गर्मी है दीवाली बाजार में नर्मी है,
मध्यमवर्गीय का जेब है खाली कैसे मनायेगा दीवली।
सुमंगला सुमन
मुम्बई, महाराष्ट्र