सिसकियां।

क्यों हम आज़ परेशान हैं,

जनजन तक यह बातें बताना होगा,

खुशियां गुम हो गयी है आज़,

जनमानस को बतलाना होगा।


बच्चे हों या बुढ़े और जवां,

सब हैं आज़ परेशान।

कैसे कैसे लोग रह रहें हैं,

नहीं देखते दुःखी इन्सान।


आगे बढ़ने में लगे हुए हैं,

सबके मन मन्दिर में बस एक ध्यान।

विश्व भर में हमें आगे बढ़ना होगा,

इसके लिए हो रहा  युद्ध यहां,

मान रहे हैं एक वरदान।


ज़ालिम बनकर दहशत गर्दी,

सब कुछ है इसके हैं यही यथार्थ।

अपने पंख लगाकर उड़ने की,

करने लगें हैं सब कुछ दिल से,

दिखता है बस उनके एक स्वार्थ।


मानवीय मूल्यों को खत्म करने,

हों रहा है युद्ध और समर।

सबके मन में बसी है एक अरमान,

इसलिए लड़ रहे इधर-उधर।


महिलाएं हों या मासुम से बच्चे,

नहीं हैं इन्हें अब  कोई  परवाह।

सबके मन में बस आगे बढ़ने की,

ख्वाहिश है मन में एक उन्माद सा,

इसी जुनून का फैल रहा अफवाह।


एक नवीन सन्देश को लेकर,

हमें आज़ हमें बढ़ना होगा।

शान्ति और आनन्द से रहने,

सबमें यह गुण अब भरना होगा।


डॉ ०अशोक,पटना, बिहार।