सिंहन की जु सवारि करें नित पर्वत पे मुसकाय रही है ,
लालहि चूनर लालहि कंगन लालहि रंग लगाय रही है,
हाथन में तलवार जु राजत लालहि रक्त सजाय रही है ,
रक्तन बूंदन जो उपजे जन को चट से चटकाय रही है ।
लालहि रक्त पिपास जु कालिक क्रोधन दुष्ट चबाय रही हैं,
चं डक मुंडन तोड़ मरोड़न को पल दो पल माय रही है,
केशन भाल पसारत घूमत ढूंढत दुष्टन थाय रही है ,
मां दलनी दल दुष्टन के सिर काटत छांटत आय रही है l
मातुल रूप भयानक लागत साहस शौर्य दिखाय रही है
राक्षस देखत ही भय कांपत निर्बल ज्यों असहाय कही है।
भाग जगाबत है दुनिया जन दानव के कुल ढाय रही है
झुंड फकेर निशाचर मारत रक़्त नहा कृशकाय रही है।
हाथन खप्पर काट निशाचर स्वर्ग धरा कु बनाय रही हैं
लालहि साज सजावत शीश जु लाल सुहागिन भाय रही है
दौलत धान अनाज सबै सब साधन सों सरसाय रही है
भक्तन में गिनती अलका चटकील सु आंचल पाय रही है।
डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।