क्या खोया और क्या पाया

चहुं ओर अंधेरा है छाया वासना पसारी है माया

ज्ञानी विज्ञानी अज्ञानी में भेद समझ में ना आया

बच्चे जवान और बूढ़ों पर छाई  है काली छाया

घोर तिमिर छाए बादल मारग समझ नहीं आया

पथदर्शक बन कोई आए भेद तिमिर का बतलाए

वनकर प्रकाश की रश्मि मार्ग मुक्ति का दिखलाए

छटें वासना के बादल  चहुंओर उजाला छा जाए

तम प्रकाश के झंझट‌ से मुक्ति सभीको मिल‌ जाए

जैसा‌ बोया बैसा काटो मन मैल भरा उसको छांटो

मार्ग बनाओ खुद अपना अपनेपन को मत बांटो

अपनाकरके योग मार्ग योग करो भोग को काटो

बुद्धि विवेक का कर प्रयोग मनकी चंचलता डाटो

जीव और निर्जीव सभी ,उस परमसत्य की है माया

हो समाविष्ट समदर्शी बन भूल जाओ खुद की काया

गोद प्रकृति की अपनाकर, आनंद हिलोरों पर झूलो

चिंतन करो पथिक बनकर क्या खोया औ क्या पाया


बच्चू लाल परमानंद दीक्षित

दबोहा भिंड 8349160755