महारास जन्माष्टमी

लेकर आई अरनिमा,

पर्वणी की भोर ।

हैं आस लिए रवि,हरि दर्शन को,

ठिठके पग ढूंढते हैं छोर।


हर्षित है हरीतिमा,

वन उपवन चहूंँ ओर।

दर्शन देंगे आज धरा को,

राधे संग चितचोर।


विकल हो रही पल-पल जमुना, 

हरि कब डालेंगे पोर।

स्पर्श देकर मोहन मुझको,

कब करेंगे विभोर।


विकल हुआ है चंद्रमा,

नीज तिमिर को छोड़।

संग लिए धवल दीप्ति को,

हरि स्वागत की ओर।


कितना मोहक दृश्य वो होगा,

जब महारास होगा हर ओर।

शुध ना रहेगी तब जन-जन को,

देव भी देखेंगे कर जोड़।।


         अर्चना भारती नागेंद्र 

 पटना (सतकपुर, सरकट्टी) बिहार