प्रकृति सबको समान रूप से
पैदा करती है,
पर लोग फंसकर रह जाते हैं
धर्म,सम्प्रदाय,जाति व पाखंड के
अजूबे जाल में,
अपना हक़ अधिकार पाने को
जागृत लोग जोखिम उठाते हैं
और नहीं कहते कि
हम फंसे हुए हैं जंजाल में,
जिंदगी का हर कदम संघर्ष मांगता है,
मुर्दे हर बात को कल पर टांगता है,
क्या कभी सुना है
किसी लाश ने संघर्ष किया?
तभी तो वो मिट्टी में मिल जाता है
क्योंकि उसने कभी जोखिम नहीं लिया,
मुर्दे बनकर रहने से अच्छा है
जिंदा होकर रहें,
प्रतिकार करें और
कभी कोई जुल्म न सहें।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग