प्रिय प्रीत की परिधि में
अंकित बस तेरा नाम है,
स्मित स्मृतियों से उज्जवल
सवेरा और सुरमई शाम है।
सुहास मुख नयन तारक में
उर में तेरा ही स्पन्दन है,
विलय हुआ है मेरा तुझमें
तुझसे जन्मों का बंधन है।
तुझसे ज्यादा तुझमें मैं हूँ
फिर तेरे जाने का अंदेशा क्यों?
वनप्रिया के मृदु तान में
चिर विरह का संदेशा क्यों?
सित-असित पन्नों पर
आड़ी तिरछी मैं इक रेखा थी,
दिशाहीन पगडंडी सी
मैं लक्ष्य से अनदेखा थी।
तेरा विचुंबित मेरी
है यह स्मित काया,
तेरे स्पर्श से विस्मित
हुआ है मेरा साया।
पाकर तुझको मैं पूर्ण हुई,
सिमित के सीमांत तक सम्पूर्ण हुई।
बिसराकर स्वयं को पा गयी तुझको,
फिर भी तुझे पाने का अन्वेषा क्यों?
मधुमास के मलयानिल में,
चिर विरह का संदेशा क्यों...
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ )