जी-20 का भारत और यथार्थ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि चमकाने का नया मौका दिन-ब-दिन करीब आता जा रहा है। साथ ही यह भी पता चल रहा है कि इसके लिये किस बड़े पैमाने पर पैसा खर्च किया जा रहा है। 9 और 10 सितम्बर को दिल्ली में आयोजित जी-20 के दौरान इवेंटबाजी में सिद्धहस्त मोदी भारत की एक ऐसी चमकदार तस्वीर पेश करने जा रहे हैं जिसके पीछे देश की बदहाली का अंधेरा छिप जाये। 

वैश्विक नेताओं के सामने वे खुद को एक उदार, लोकतांत्रिक तथा समतावादी नेता साबित करने की कोशिश करने जा रहे हैं ताकि पिछले नौ वर्षों के दौरान उनके सारे लोकतंत्र विरोधी कृत्यों पर पर्दा पड़ जाये। वे खुद और साथ ही कमजोर होती हुई उनकी भारतीय जनता पार्टी इस अंतरराष्ट्रीय आयोजन का भरपूर लाभ आंतरिक राजनीति में उठाने पर आमादा दिखलाई पड़ रही है। 

इसके लिये एक तरफ आयोजन स्थलों को बेतहाशा सजाया-संवारा जा रहा है, तो दूसरी तरफ मोदी इस आशय के बयान दे रहे हैं हैं मानों उन्होंने मुल्क को जन्नत बना दिया हो। पहले बात करें साज-सज्जा की। दिल्ली के ह्रदय स्थल पर बने प्रगति मैदान में भारत मंडपम के नाम से भव्य आयोजन स्थल बनकर लगभग तैयार हो चुका है। 26 देशों के राष्ट्राध्यक्ष यहां भारत के आध्यात्मिक-सांस्कृतिक गौरव और परम्परा का प्रस्तुतिकरण देखेंगे। बाहरी मुल्कों से आने वाले जी-20 के संख्या में बहुत कम लेकिन बेहद प्रभावशाली राष्ट्राध्यक्षों को दिखलाने और आत्मसंतुष्टि के लिये मंडप के अलग-अलग हिस्सों में भारत का केन्द्रीय भाव वसुधैव कुटुम्बकम् अभिव्यक्त हो रहा है।

सांस्कृतिक वीथिका में 29 भाषाओं में बतलाया गया है कि संसार एक परिवार है। हिन्दू धर्म से जुड़े कई प्रतीक चिन्ह भी यहां हैं- मोर पंख है तो शंख भी। यहां पंचतत्व है, सूर्य शक्ति है, योग है और वेद की पाण्डुलिपि भी। यानी वह सब कुछ जो प्राचीन भारत की देन है। हालांकि इस सम्पूर्ण वास्तु के दौरान यह भी ध्यान रखा गया है कि वर्तमान सत्ता को इन तमाम उपलब्धियों एवं अर्जित विकास का श्रेय देना है। जीरो से इसरो इसी प्रयास की एक कड़ी है। 

तीन दर्जन सभा कक्षों वाली चार मंजिला इमारत में 14 हजार लोगों के बैठने तथा 5500 कारों की पार्किंग के लिये जगह है। शंखनुमा झूमर के साथ इतना आलीशान सभा कक्ष कि कोई देश की गरीबी का अंदाजा भी न लगा सके। इसके साथ ही बात करनी जरूरी है उस साक्षात्कार की जो प्रधानमंत्री ने जी-20 सम्मेलन के अवसर पर एक समाचार एजेंसी को दिया है।

 उन्होंने इसमें बताया है कि पहले भारत को एक अरब भूखे लोगों का देश माना जाता था परन्तु अब वह एक अरब महत्वाकांक्षी दिमाग तथा 2 अरब कुशल हाथों में रोजगार का देश बन गया है। भारत के जल्दी ही दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाने का दावा दोहराते हुए मोदी साहब बतलाते हैं कि 2047 तक, यानी आजादी के सौ साल पूरे होने पर देश एक विकसित राष्ट्र बन जायेगा। विकास के लिये 4-डी का फार्मूला देते हुए मोदी यह भी बताते हैं कि अब दुनिया का भारत को देखने का नजरिया बदल गया है।

 डेमोक्रेसी, डेमोग्राफी और डायवर्सिटी के साथ डेवलपमेंट शब्द को जोड़ते हुए प्रधानमंत्री ने देशवासियों को आश्वस्त किया है कि भारत का 1000 वर्षों के विकास का रास्ता प्रशस्त हो चुका है। एक अच्छे समाज सुधारक की तरह उन्होंने भ्रष्टाचार, जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता से दूर रहने की सलाह दी है। इसके साथ ही उन्होंने देशी व अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र पर अपनी गहरी पकड़ व अनुभव के बल पर छोटे विकासशील देशों को सलाह भी दी है कि वे कर्जों के जाल में न फंसें। 

इसके अलावा भी उन्होंने अनेक बातें कही हैं जो भारत के नागरिक आधारित मॉडल, फेक न्यूज के खतरे, कोरोना काल में भारत द्वारा 150 देशों को टीके व दवाइयां देने और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय से सम्बन्धित है। अगर मोदी के उपरोक्त साक्षात्कार के अलग-अलग हिस्सों पर विचार करें तो साफ है कि भारत में कम से कम ऐसा कुछ भी होता हुआ नहीं दिख रहा है। 

देश में रोजगार की स्थिति सर्वज्ञात है। देश की विकास दर निम्न स्तर पर है। देश में लोकतंत्र के जितने खराब दिन अभी चल रहे हैं, वैसे नागरिकों ने कभी भी नहीं देखे। मानवाधिकार कानून ताक पर रख दिये गये हैं, सारी संवैधानिक संस्थाएं इतनी कमजोर कर दी गई हैं कि वे एक तरह से सरकार की हां में हां मिला रही हैं। सत्ता से सवाल पूछने वाले जेलों में डाल दिये गये हैं।

 लोकतंत्र की जननी होने का दावा करने वाले मोदी का 9 साल का कार्यकाल नागरिकों के बुनियादी हकों और समावेशी संस्कृति को मटियामेट कर चुका है। जातिवाद और साम्प्रदायिकता का आलम यह है कि दलित महिलाओं से बलात्कार होते हैं, आदिवासियों पर पेशाब की जाती है तथा ट्रेन में बाकायदा शिनाख्त करते हुए मुस्लिमों को गोलियों से भुना है। 

संविधान बदलने की बात होती है और विपक्ष मुक्त भारत बनाया जा रहा है।आधी से ज्यादा दिल्ली को ठहराकर या बन्द कराकर मोदी स्वयं को बाहरी लोगों के सामने देश का सबसे शक्तिशाली और देशवासियों के समक्ष एक लोकप्रिय वैश्विक नेता साबित करना चाहते हैं। आंतरिक राजनीति में अपनी कमजोर होती स्थिति को सुधारने के लिये मोदी बड़े पैमाने पर खर्च कर रहे हैं। 

वरना नयी दिल्ली और उसके आसपास ऐसे सैकड़ों स्थल हैं जहां ये आयोजन सादगीपूर्ण ढंग से हो सकते हैं। दरअसल यह मोदी द्वारा वैश्विक नेताओं के समक्ष प्रस्तुतिकरण के लिये तैयार किया गया भारत है। असली हिन्दुस्तान बिलकुल अलग है- बदहाल, विपन्न, विभाजित और पिछड़ता हुआ।