बंदूकें बारूद कभी मानव का भला नहीं करते,
परिभाषा बदल जाती जब हमारे ही हाथ इनका प्रयोग करते।
सीमा के प्रहरी शोणित,लोहित हो जब मां भारती का माथा चूमते।
मौलती चूड़ियां पुछता मांगों का सिंदूर,
होती मूर्छित एक मां अंक समेटे,
स्तन पान करते नन्हे शिशु को।
अनुज के कांधे कर रहा अग्रज अपनी अंतिम यात्रा,
मुखाग्नि दे सलाम करती बलिदानी सैनिक बेटी।
तिंरगे में लिपट कर आता
शहीद सैनिक एक,
मां ,बाबा,भाई,बहन, बच्चे पत्नी बिलखते अनेक।
गुलामी के समय नहीं मिलता था तिरंगा बलिदानियों को,
लटका देते फांसी के फंदे पर ,कुचल देते जूतों से शीश।
मातृभूमि की बलि वेदी पर फिर भी जुड़ते जाते बलिदानी अनेक।
सहस्त्र कंठों से उठता निनाद वंदेमातरम का,
और उठता जय घोष मां भारती की जय का।
राष्ट्र प्रेम का जनून मृत्यु को हंसते-हंसते वर्ण करते।
नहीं जानता जिनके लिए वह चिर निद्रा में सो रहा,
उसे रखेंगे याद या भूल जाएंगे।
सीमा के प्रहरियों हम तुम्हारा ऋण कभी न चुका पाएंगे,
प्रणाम करेंगे,याद करेगें,नमन करेंगे।
बेला विरदी
1382, सेक्टर 18
जगाधरी-हरियाणा
8295863204