दौलत की धौंस और
व्यवस्था भी बने बनाये,
कुछ लोग होते हैं
माहौल बिगाड़ने में माहिर
अपने कर्म कुकर्मों से
यदा कदा बार बार
देश को है जताए,
तो बताओ, शर्म उन्हें क्यों आए?
मुंह से कह तो देते हैं
कि औरत देवी का रूप है,
पर असल में उनका सोच ही कुरूप है,
नंगे घुमाने, बलात्संग करने को
कुछ धूर्त औरतें ही गलत नहीं कहते,
कितने भी क्रूर अपराध हो
ये अपराधियों के ही पक्ष में है रहते,
ये गलत को भी संस्कृति क्यों कहते हैं?
अश्पृश्यता, मारना पीटना, हत्या करना,
लिंचिंग, बलात्कारी में
ये शामिल क्यों रहते हैं?
जनंघ्यता को क्यों माने संस्कृति,
क्या नजर नहीं आता उन्हें विकृति,
कौन किस पर विश्वास करे
किन किन पर भरोसा जताए,
कौन कब किसे निर्वस्त्र घुमाए,
वाकई वे बेशर्म हो चुके
शर्म उन्हें क्यों आए।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छ ग