जब भी लिखूं देश की पहचान लिखूं,
स्वतंत्रता पर मान से प्यारा गान लिखूं,
दीनबंधू के लिए अभिमान कर सकने
के लिए कोई बड़ा फरमान लिखूं,
वीरों के बलिदानों की कोई नई
किताब लिखूं संजोकर भेंट दूं!
मगर मेरे सपनों की आजादी,
देश की बदहाली में नहीं, बेरोजगारी,
निर्धनता और बीमारी में नहीं,
नंगे-भुखों के संघर्षशील जीवन में नहीं,
किसी क्रूरता में नहीं, नारी प्रताड़ना में नहीं,
हम आजाद हैं मगर गंदी मानसिकता के गुलाम हैं!
सभी यदि संघर्षशील हैं,
तो हम आजाद नहीं हैं,
हम सब सत्ता और नौकरशाहों
के पराधीन हैं, यहां अपना कुछ नहीं होता,
भ्रष्टाचारी दानव अमर है, बाहर यही अमर हैं!
जयश्री वर्मा (शिक्षिका)
इंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070