आप की याद आती रही रात -दिन,
आश की लौ जलाती रही रात -दिन।
कुछ कमाने गये आप परदेश में,
रोटियां झिलमिलातीं रहीं रात -दिन।
साथ मिलकर रहेंगे हमेशा सनम,
दूरियां जी जलाती रही रात -दिन।
माॅं -पिता अब हमारे सहारे हुए,
लोरियां गुनगुनाती रही रात -दिन।
आप की ये कमी खल रही है मुझे ,
खुद ब खुद बुदबुदाती रही रात-दिन।
मैं समझ भी गयीआपकी बात को,
पर अगन ये जलाती रही रात -दिन।
आपका आगमन यदि हुआ जो इधर,
प्रेम दीपक जलाती रही रात -दिन।
अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०