एक तेरे स्पर्श को पाकर,स्पंदित हो जाती हूं,
जब तेरे चरणों को छूती,आनंदित हो जाती हूं।
मां तेरे आंचल की छाया,हर पीड़ा को हर लेती,
आकर तेरे आंचल में मां, मैं हर्षित हो जाती हूं।।
सब कहते मेरी छाया तू ,मैं तेरी परछाई हूं,
पावन गंगा जल सी मां तू, माथे तुम्हें लगाई हूं,
संकट मेरी हर लेती तू, विपदाओं को टाला है,
एक तेरे अहसास से ही,मैं प्रतिपादित हो जाती हूं।।
संघर्षों के सैलाबों में ,चलना मुझे सिखाई मां,
सूरज तपता ढल जाता है,ढलना मुझे सिखाई मां
संबोधित कर पानी जैसा,बहना मुझे सिखाई तू
हर रंग में "मैं"रंग जाती हूं,मर्यादित हो जाती हूं।।
मन उठते आडंबर को,शांत,सरल तुम कर देती,
जब थक कर मुरझाई हूं,हौंसला फिर से भर देती।
कुंठित सी गलियारों में भी,राह मुझे दिखलाती हो,
हाथ तुम्हारा पाकर सिर पे,पूर्ण फलित हो जाती हूं।।
पूजा भूषण झा,वैशाली, बिहार।