मुस्कान में मिठास की पर छाई

मुस्कान में पराए भी अपने होते हैं 

अटके काम पल भर में पूरे होते हैं 

सुखी काया की नींव होते हैं 

मानवता का प्रतीक होते हैं


स्वभाव की यह सच्ची कमाई है

इस कला में अंधकारों में भी 

भरपूर खुशहाली छाई है 

मुस्कान में मिठास की परछाई है


मुस्कान उस कला का नाम है 

भरपूर खुशबू फैलाना उसका काम है 

अपने स्वभाव में ढाल के देखो 

फिर तुम्हारा नाम ही नाम है


मीठी जुबान का ऐसा कमाल है 

कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता 

मीठा बोलने वाले की 

मिर्ची भी बिक जाती है

 

लेखक- कर विशेषज्ञ, साहित्यकार, स्तंभकार, कानूनी लेखक, चिंतक, कवि, एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र