रगों में आजादी का खुमार है,
वतन के वास्ते जाँ-निसार है।
बुलंदियों का सदा इस्तकबाल है,
खिज़ा गयी अब बहार ही बहार है।
जहाँ रौशन नूर-ए-तालीम से,
लबों पे खुशियां बेशुमार है।
नहीं झुकने देंगे कभी हम तिरंगा,
सर कलम को हाथ यह तैयार है।
ज़ुल्म का करेंगे हम ख़ात्मा,
बुलंद इरादों पर हमें ऐतबार है।
जुनून है बस चैन-ओ-अमन का,
मज़हब की लड़ाई अस्वीकार है।
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)