ब्याह कर जब वह घर आई,
एक इच्छा अपने पति से जताई।
मांँ-बाप ने कर दी मेरी विदाई,
मैं कर न सकी अपनी पूरी पढ़ाई।।
पति ने पत्नी के मनोभाव को जाना,
बेचारे पति ने किया न कोई बहाना।
उस समय पति की छोटी थी कमाई,
फिर भी उसने पत्नी की पूरी की पढ़ाई ।।
घर के काम में पति ने जोर न डाला,
नौकरी संग घर भी संभाला।
हर सुख-दुख में देता था पति साथ,
हर पल पत्नी का थामा उसने हांँथ।।
आखिर मेहनत काम में आई,
पत्नी पढ़ी तो अफसर बन पाई।
घर-घर खुशी में बाँटी मिठाई,
पति-पत्नी की सबने की बड़ाई।।
लेकिन वक्त बहुत ही बेइमान,
पत्नी को पद प्रतिष्ठा में आया गुमान।
पति की छोटा पद न उसको भाया,
पति को झूठे चक्रव्यूह में फंसाया।।
जिस पति ने पत्नी को पढ़ाया,
उसी से पत्नी ने हाँथ छुड़ाया।
माना तुमने दिन रात की पढ़ाई,
मेहनत तुम्हारी रंग थी लाई।।
पति ने तुम पर अपना सब वारा था,
आगे बढ़ने में उसने दिया सहारा था।
किस खता की तुमने सजा सुनाई।
चीख के कहता दर्द पति का,
पत्नी ने की मुझसे बेवफाई।।
हर पति का दिल अब घबराता है,
पत्नी देगी दगा, जो उसे पढ़ाता है?
एक धोखे से आज नारी हुई बदनाम,
अब कहते लोग नारी का करें सम्मान?
सोचा था मैंने भी आगे पढ़ने जाऊंँगी,
पति देगा साथ कुछ करके दिखलाऊंगी।
बहुत सी नारी के तुमने अरमान मारे हैं,
कौन पति कहेगा अब?पत्नी के अरमान हमारे हैं।।
शहनाज बानो "शमा"
चित्रकूट उ० प्र०