-गीतकार राजेंद्र राजन की तीसरी जन्म जयंती एवं विभा मिश्रा की स्मृति में हुआ समारोह का आयोजन
सहारनपुर। नवांकुर नाट्य संस्था के तत्वावधान में देश के प्रख्यात गीतकार राजेन्द्र राजन की तीसरी जन्म जयंती एवं उनकी पत्नी और कवयित्री विभा मिश्रा की स्मृति में एक कवि सम्मेलन एवं समारोह का आयोजन आवास विकास के एक सभागार में किया गया। अंतर्राष्ट्रीय गीतकार एवं हिन्दी व मैथिली के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र समारोह के अध्यक्ष और पूर्व सांसद राघव लखनपाल शर्मा मुख्य अतिथि तथा उद्यमी शिव कुमार गौड़, भाजपा नेता के एल अरोड़ा व दिनेश सेठी, यशपाल भाटिया, आप नेता योगेश दहिया व शिक्षाविद् डॉ. ओ पी गौड़ अतिथि रहे।
समारोह का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ। कार्यक्रम संयोजक और राजन दम्पत्ति के सुपुत्र प्रशांत राजन ने दोनों कवियों की जीवन व काव्य यात्रा पर प्रकाश डाला। कवि सम्मेलन का शुभारंभ अजय भारद्धाज द्वारा राजेंद्र राजन के एक गीत और दीपा जैन द्वारा विभा मिश्रा के गाए एक गीत से हुयी।
मुख्य अतिथि, पूर्व सांसद राघव लखनपाल शर्मा ने राजेन्द्र राजन एवं विभा मिश्रा को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने बचपन से ही उनके गीतों का रसास्वादन किया है। राजन जी का देश के महान कवियों में ऊंचा स्थान था। वे अपने गीतों,ग़ज़लों में हमेशा हमारे बीच रहेंगे। समारोह अध्यख डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा,उन दोनों का जाना हिन्दी कविता की अपूर्णीय क्षति है। राजन के गीतों का मर्म श्रोता के हृदय को सहज ही छू लेता था। राजन को दुनिया भर में बडे़ चाव से सुना जाता था। डॉ. मिश्र ने उनकी स्मृति को कुछ इस तरह नमन किया-‘तुम क्या गए नख्त गीतों के असमय अस्त हुए,एक-एक कर आखर सारे लकवाग्रस्त हुए/तुम क्या गए शब्द भी स्वर भी अस्त व्यस्त हुए,सप्तक ऋषियों में अब तुम भी नये अगस्त हुए।’
शीतलवाणी के संपादक डॉ.वीरेन्द्र आज़म ने कहा कि राजन राजन प्रेम मंत्र लिखने वाले गीतकार थे। वह गीतों के राजकुमार थे। उन्होंने प्रेम गीतों के अलावा सामाजिक सरोकारों को भी अपने गीतों, ग़ज़लों और मुक्तकों में पिरोकर समाज को दिशा देने का काम किया। उन्होंने अपनी प्रकृति रचना के माध्यम से राजन दम्पत्ति को श्रद्धांजलि दी। डॉ.आर पी सारस्वत ने राजन जी को इन पंक्तियों से भावांजलि दी-‘अब तक हमको विश्वास नहीं,नयनों का तारा चला गया/खुशबू करती थी प्यार जिसे, वह चमन हमारा चला गया।’
डॉ.विजेंद्र पाल शर्मा ने अपने इस माहिया से श्रद्धांजलि दी-‘वह इतना प्यारा था/ गीतों के नभ का, अनुपम ध्रुवतारा था।’ विनोद भृंग ने कहा-‘सरस मंचों के अधरों की सरल मुस्कान थे राजन/सरलता औ’ सहजता की वहीं पहचान थे राजन।’ नरेंद्र मस्ताना के भाव थे-‘राजन अपनी कलम से करते रहे कमाल/गीत ग़ज़ल ऐसे लिखे, देते लोग मिसाल।’ हरिराम पथिक ने अपने दोहो से श्रद्धांजलि दी। उनका एक दोहा ये रहा-‘ख़ुद से लड़ना सीखिए, सबसे लड़ना छोड़/सतपथ जो बाधा खड़ी, सतबल से दे तोड़।‘
प्रतिभा त्रिपाठी ने कहा-‘झलक पाकर तुम्हारी तुम ही में खो गयी हूं/दीवाने दिल से पूछो, ये क्या मैं हो गई हूं।’ जबकि संदीप शर्मा ने अपना काव्य पाठ यूं किया-‘तो मेरे अनुभव से आप सब तो लाभ लीजिए/अपने जीवन में मोबाइल के प्रयोग को सीमित कीजिए।’ संस्था अध्यक्ष करुणा प्रकाश ने भी काव्य पाठ करते हुए पढ़ा-‘यू तो तुम्हारे साथ बिताये लम्हों का हर किस्सा है याद मुझे/उस बारिश वाले दिन का भी हर हिस्सा है याद मुझे।’’
संजीव झींगरन ने भी राजन के एक गीत का सस्वर काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में पूर्व प्राचार्या डॉ.नीलांजना किशोर, कुलदीप धमीजा, सुमेधा नीरज, अलका शर्मा, मंजू जैन, के के गर्ग, राकेश शर्मा, जावेद सरोहा, अनुपमा चौधरी, गीता सिंह, विपुल माहेश्वरी, मधुकर, ममता प्रभाकर, योगेश पंवार, दानिश व सतनाम आदि मौजूद रहे। संचालन प्रशांत राजन ने किया।