मुंशी प्रेमचंद

जगत में नाम जो अमर वही मैं नाम दोहराने,

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने।

31 जुलाई 1880 में जन्मा था इक लाल,

कलम के थे वह जादूगर,साहित्य के ख़ज़ाने।

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने...


मखमली शब्द वे दिल में उतर जाते थे,

हिंदी उर्दू दोनों ही  समरूप से भाते थे।

आये थे वह स्वप्न से हक़ीक़त में जगाने,

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने...


जब ईदगाह पढ़ा ज़ार ज़ार थी रोई,

मुफलिसी में रहकर ही लिख सकता ऐसा कोई।

पकड़ कितनी अच्छी थी भावों के वह सयाने,

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने...


कथाओं के वह सम्राट,उपन्यास नरेश थे,

कहानियों को जो चलचित्र बना दे वैसे जीवेश थे।

सरल व्यक्तित्व में उनके जड़े थे लाखों नगीने,

आई हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने...


पीढ़ी दर पीढ़ी उनको पढ़ती है आयी,

निर्मला के दुख से आँखें थीं मेरी भर आयी।

जिनकी कहानियों में पाठक लगते स्वंय समाने,

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने...


कुरूतियों को न केवल लिखा बल्कि दूर भी किया,

बाल-विधवा से कर विवाह ज्वलंत उदाहरण था दिया।

गंगा-यमुनी तहज़ीब के रक्षक, आज़ादी के दीवाने,

आयी हूँ मैं आपको उनकी कथा सुनाने।


             डॉ. रीमा सिन्हा(लखनऊ)