थोड़ा सा आदमी..

तलाश रही हूं सुबह से

कहां-कहां नहीं दिखी ,

गली .. सड़क..पार्क..

कहीं तो नहीं मिला

एक भी तिनका!!

लौट रही थी हताश..

चारो ओर उगी हुई थी सिर्फ

ये कंक्रीट-कल्चर ,

लोग जश्न मना रहे थे

पेड़ों की उदासियों पर ,

और हार रहा था "आदमी"

आदमी से ही !!

सहसा कदम रुके..

सड़क किनारे

उस उपेक्षित जगह पर

इतरा रही थी दूब घास ,

थोड़ी राहत मिली..

बचा हुआ है कहीं तो

दूब की तरह .. थोड़ा सा आदमी ,

और..

थोड़े से आदमी की तरह

ये दूब घास !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ , उत्तर प्रदेश