यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि गाय हमारी माता है और हम उसके पुत्र। माता की सेवा न सही ढोंग करना तो सीखो। वह ऐसी माता है जो असली सेवा करने वाले को कुछ दे न दे, अपितु ढोंग करने वालों को मेवा देती है। उसके गोबर और मूत्र को मात्र गोबर या मूत्र कहकर उसका अपमान करने वाला कहीं का नहीं रहता। यह एक श्रेष्ठ उत्पाद है । अगर कुछ विज्ञापन छपवा दें तो चीन इम्पोर्ट करने को उतावला हो जायेगा ।
वो तो हमारी नीति है कि चीन से कुछ खरीदेंगे नहीं, इसलिए मज़बूरी है कि बेचेंगे भी नहीं । हाँ यह अलग बात है कि चाइना आइटम्स बैन लिखे टी-शर्ट छाप-छापकर चीन भारत में करोड़ों कमा लेता है। बात को पहले ठीक से समझ लें सब लोग, उसके बाद कोई राय बनाएं । जल्दी न मचाएँ, पहले चुनाव हो जाने दें ।
लोकतंत्र संविधान की ही नहीं गाय की भी देन है । पांच साल में एक बार गाय जनता से बड़ी हो जाती है । उसकी फल, फूल और नगद से पूजा करनी होती है, आरती उतारनी होती है । चुनाव सर पर हैं, गाय का पूजन जोरों पर है। अभी पूजा करेंगे तभी न कल केंद्र में कुंडली मारकर बैठ पायेंगे। गाय को लेकर सब अपने-अपने ढंग से लगे हैं। कहीं-कहीं तो सरकारें बकायदा उसे खरीदकर जनता में अपनी हिंदू छवि सुधारने का प्रयास कर रही है। गोबर न हुआ असली हिंदू बनने का प्रमाण पत्र हो गया। आम आदमी से क्या लेना देना, आम आदमी तो आम की कीमत वाला भी नहीं होता है !
गाय बड़ी होती है । लेकिन गाय चुनाव से आगे बढ़ नहीं पाती । इसी को पोलिटिक्स की तरह गौटिक्स कहते हैं । असल में गाय किसकी है यह मतदाता अपने मतों से निर्धारित करता है। लेकिन चुनाव के समय गाय को लेकर कोई संदेह नहीं हैं । गाय चाहेगी तो लाख बलात्कारों, महंगाई, बेरोजगारी के बाद भी सरकार बना देगी। देश तेजी से आधुनिक हो रहा है । आधुनिकता गाय के रास्ते घर-घर पहुँचने को तैयार है। जरूरत है तो उसे धर दबोचने की। जो इसे अच्छे से दबोच लेता है तो उसे महंगाई, बेरोजगारी और लाचारी से छुटकारा मिलता है।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार