बुद्धिमता

सुकेश बेहद निराश था,बेहद उदास था,क्योंकि वह धन की कमी के कारण अपने दोस्तों के साथ चारों धाम की यात्रा पर नहीं जा पा रहा था।

    दोस्त उसे चिढ़ाते हुए बेहतरीन फोर व्हीलर में बैठकर निकल पड़े चारों धाम की यात्रा करके पुण्य अर्जित करने के लिए।सुकेश बहुत हताश था कि अब उसे धर्मयात्रा का पुण्य प्रताप/फल नहीं मिल पाएगा।पर तभी उसे कहीं से बजता हुआ एक गाना सुनाई दिया--

"जय गणेश-जय गणेश-जय गणेश देवा।माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा,जय गणेश देवा।"

    यह गाना सुनते ही एक विचार सुकेश के मस्तिष्क में कौंध पड़ा,और वह तुरंत उठ खड़ा हो गया ।उसने स्नान किया,पुष्प हाथ में लिए,और माता-पिता के चारों ओर घूम-घूमकर परिक्रमा करने लगा।पूरी सात परिक्रमा करने के बाद वह खुश होकर बोल पड़ा--     "मैंने पूरे ब्रम्हांड की सात बार परिक्रमा कर ली है।अब चारों धाम क्या ,मुझे तो पूरे ब्रम्हांड की परिक्रमा करने का पुण्य हासिल हे गया है।बिलकुल जी,बिलकुल।"

   जब सुकेश के एक पड़ोसी ने यह सुनकर इसका मतलब जानना चाहा,तो वह बोला-"गौरीनंदन गणेश ने भी तो यही किया था,और सारे ब्रम्हांड की परिक्रमा छोटे से मूषक से न कर पाने की असमर्थता को अपनी प्रखर बुद्धि से माता-पिता की परिक्रमा करके समर्थता और विजय में बदला लिया था न "

      यह सुनकर पड़ोसी के मुख से एक ही शब्द निकल सका,और वह था--"वाह।"

                --प्रो0 (डॉ0) शरद नारायण खरे