उत्सव चतुर्थी है वहाँ |
मिलकर मनाना साथ हो,
झुकता सदा निज माथ हो ||
आई चतुर्थी है सखी |
सब भक्त गाते है लखी ||
सारा जहाँ गणराज है ,
नैवेद्य पूजन साज है ||
भादव चतुर्थी छा गयी,
उत्सव सखी मन भा गयी |
आना सभी इस धाम में,
रहते सभी अब भाव में ||
करना सखी नित साधना,
करना सभी आराधना |
माता पिता संसार है,
उनके चरण आधार है ||
पूजन करो तुम ये सदा,
गणपति भरे है दिव्यता |
मोदक चढ़ाओ भोग है,
प्रभु आस करते लोग है ||
है ज्ञान की धारा बहे,
उत्सव चतुर्थी की कहे |
देखो सभी सखियाँ मिले,
वरदान से आशा खिले ||
उत्सव बहुत ही खास है,
जगती सदा मन आस है |
हरते गजानन दुख सभी,
प्रथमेश भूलो मत कभी ||
रखती सदा यह कामना,
विश्वास मेरा थामना |
रखना सदा शुभ भावना,
पूरी करो मन साधना ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश