गणपति (मधुमालती छंद )

गणपति विराजे है जहाँ,

उत्सव चतुर्थी है वहाँ |

मिलकर मनाना साथ हो,

झुकता सदा निज माथ हो ||

आई चतुर्थी है  सखी |

सब भक्त गाते है लखी ||

सारा जहाँ गणराज है ,

नैवेद्य पूजन साज है ||

भादव चतुर्थी छा गयी,

उत्सव सखी मन भा गयी |

आना सभी इस धाम में,

रहते सभी  अब भाव में ||

करना सखी नित साधना,

करना सभी आराधना |

माता पिता संसार है,

उनके चरण आधार है ||

पूजन करो तुम ये सदा,

गणपति भरे है दिव्यता |

मोदक चढ़ाओ भोग है,

प्रभु आस करते लोग है ||

है ज्ञान की धारा बहे,

उत्सव चतुर्थी की कहे |

देखो सभी सखियाँ मिले,

वरदान से आशा खिले ||

उत्सव बहुत ही खास है,

जगती सदा मन आस है |

हरते गजानन दुख सभी,

प्रथमेश भूलो मत कभी ||

रखती सदा यह कामना,

विश्वास मेरा थामना |

रखना सदा शुभ भावना,

पूरी करो मन साधना ||

_______________________

कवयित्री

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश