पूर्वजों द्वारा प्रदत्त हमें हिंदी राष्ट्रभाषा उपहार मिला
स्वर्णाक्षरों में यह अपना अनुपम इतिहास बतलाती है ।।
अंग्रेजी के छा जाने से कितनी पीड़ाएँ हैं इसने भोगी
सहज,सौम्य बन मेल-मिलाप में उपयोगी बन जाती है ।।
संस्कृत ने देकर मातृत्व पाला है इसे बड़े नाजों से
माथे पर बिंदी समान रिवाजों से अपना ताज सजाती है ।।
कवियों ने गढ़ कर कविताएं अद्भुत साहित्य बतलाया
विश्व पटल पर गूँज कर हिंदी भारत का गर्व बढ़ाती है ।।
भाषा विष्णुप्रिया, शब्दवैभवी, भावों में यह इठलाती है
लोकोक्तियों और मुहावरों से जीवन अर्थ समझाती है ।।
कटाक्षों द्वारा सामाजिक,राजनैतिक दर्पण दिखलाकर
साहित्य के आवरण में लिपट चरित्र निर्माण करवाती है ।।
अनेकता में एकता की डोर लिए शिखर पर है आरूढ़
अलंकारों से सुसज्जित इतिहास की सखी कहलाती है ।।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य की अभिव्यक्ति का बनती है माध्यम
मुखर हो राजनीतिक परिवेश का आईना भी बन जाती है ।।
माँ की मधुर लोरी समेटे प्राकृत है यह प्रगाढ़ प्रेम की
गाँव,शहर,गली, नुक्कड़ों पर शान से खूब बतियाती है ।।
सुन्दर व्याकरण, बावन वर्ण, शब्दों से श्रृंगारिक हो कर
शब्दों के अविरल निर्झर की जन-जन में धार बहाती है ।।
रैदास, कबीर तुलसी,बिहारी,जयशंकर की रही दुलारी
स्नेह और ममता की गागर मे सागर हिंदी कहलाती है।।
वंदना जैन