कभी हो जाएगें हम-तुम तुराब आहिस्ता-आहिस्ता

ख़ुमारे इश्क़ मुझ पे चढ़ रहा आहिस्ता आहिस्ता -१

उतरने जो लगा उसका नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता 


गली से झांकता सा वो तिरा चेहरा लगा जैसे -२

निकलता बादलों से आफ़ताब आहिस्ता-आहिस्ता


ज़रूरत अब नहीं मुझको किसी भी मयकदे की जाँ -३

तिरी आँखें पिला देती शराब आहिस्ता-आहिस्ता


अभी है वक़्त थोड़ा जी ले हम दोनों मुहब्बत में -४

मेरी उल्फ़त का करना फिर हिसाब आहिस्ता-आहिस्ता


चलो मिल के बनाए शादमानी ज़िंदगी को हम -५

कभी हो जाएगें हम-तुम तुराब आहिस्ता-आहिस्ता


प्रज्ञा देवले✍️

महेश्वर, जिला-खरगोन, मध्यप्रदेश