तूफान और भंवर को बहुत नाज है खुद पर।
कश्तियांँ डूबो कर बहुत गुमान है खुद पर।।
बदल जाती है हवाएं वक्त की रवानी से।
रूकता नहीं है कोई बहुत देर तक
जीवन की परेशानी में।।
अभिमान जो धूल को उड़ने का हो जाता।
बरखा की चपेट में आ भूमि पर बिखर जाता।।
रावण को घमंड जो ज्ञान का हुआ।
बल, बुद्धि सम्पत्ति का विनाश फिर हुआ।।
समय, समय से बदलता है, यकीन तू कर।
हे मनु, कष्टों के दरिया में स्वयं को न तू गुम कर।।
अभिमान न कर तू किसी भी चीज का।
शुक्रिया कर तू बस मानव जीवन की सुंदर रीति का।।
-वंदना अग्रवाल 'निराली '
लखनऊ, उत्तर प्रदेश