तेरी यादों की खुशबू जैसे रात रानी का सुरभित पुष्प,
खिल जाती हूँ सोचकर तुझको मन बावरा मधुप।
गुंजित तेरे शब्दों की वीणा मेरे उर को करती झंकृत,
स्नेहिल यादों के बंधन में खिल जाता है मेरा रूप।
मलय बयार आज है चला मेरे मन के आँचल में,
हाय!नुपुर की मर्मर ध्वनि,रात सताये छागल में।
साँझ ढले तेरा छत पर आना,मुकुर देख मेरा शर्माना,
रक्तिम कपोल, आधर सस्मित दृग छुपाये काजल में।
उषा की प्रथम किरण, रागिनी का अनुपम शशि,
इक क्षण न ओझल होते तुम बनकर अंजन मसि।
बन बेला मैं चहकूँ तेरी स्मृति के स्निग्ध आलय में,
तेरी प्रीत में बावली मैं तो,नयन कटार ज्यों असि।
रीमा सिन्हा (लखनऊ )