जियो और जीने दो का संदेश लेकर आता है आर्जव धर्म। यह धर्म व्यक्ति से समष्टि, एकल से समग्रता, घर से मुहल्ला, शहर, प्रदेश, देश और समस्त देशों में शांति का संदेश देता है। प्रत्येक व्यक्ति में सरलता आ जाये तो संपूर्ण दुनिया में शांति आ जाये। छलकपट, मायाचारी, बेईमानी छोड़कर आर्जव धर्म अपनाने से स्वच्छ समाज का निर्माण होगा। दुनिया के सारे देश यदि छल-कपट छोड़ दें तो सारी दुनिया में सुख-शांति आ जाये। आज नीचे से ऊपर तक कहीं न कहीं छल-कपट पुष्पित-पल्लवित है।
वस्तुओं में मिलावट, कालाबाजारी, डाक्टरों द्वारा अपना पैसा बनाने के चक्कर में अवश्यकता न होने पर भी आपरेशन कर देना, पैसा बनाने के चक्कर में निगेटिव की पांजिटिव, पाजिटिव की निगेटिव रिपोर्ट बना देना आदि मरीजों के साथ बेईमानी, कर्मचारियों द्वारा अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाना, सौदों में बीच में कमीशन लेना, काम करवाने की ऐवज में रिश्वतखोरी करना, मुह से कहना कुछ और तथा करना कुछ और ये सब मायाचारी में आते हैं। इनको छोड़ने पर ही व्यक्ति के गुण प्रकट होता है। सरलता ही मनुष्य का वास्तविक स्वभाव है।
हमारे संत आचाय विद्यासागर, आचार्य सुनीलसागर, मुनि पूज्यसागर जी आदि कहते हैं कि मन, वचन और कार्य से सात्विक व्यक्ति के आचारण को आर्जव धर्म माना है। जब मनुष्य का मन, वचन और काय किसी एक कार्य में लग जाय तो समझ लेना चाहिए कि उसके तीवन में आर्जव धर्म का प्रवेश हो गया है।
जब व्यक्ति मन, वचन और काय को शुभ कार्य में लगाता है तो सुख, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है, वहीं जब अशुभ कार्य में मन लगाता है तो दुख, क्लेश का अनुभव करता हुआ मानसिक सुतुलन खो बैठता है। इससे भी कहीं अधिक जब शुभ-अशुभ कार्य को छोड़ स्वयं में स्थिर हो जाता है तो वह परमात्मा बन जाता है। आर्जव धर्म के अभाव में वर्तमान में जीने वाला व्यक्ति ही आर्जव धर्म को स्पर्श कर सकता है।
जब कपट, मायाचारी जाती है तो आर्जव धर्म आता है, निर्मलता, पवित्रता, आती है। छल-कपट करने वाले लोगों की बहुत बुरी दशा होती है। छल-कपट जो करते हैं, मायाचारी जो करते हैं, वो हमेशा शंकित रहते हैं। हमारा छल किसी को मालूम ना पड़ जाए, बेईमानी किसी को मालूम न पड़ जाय, हमारा षडयंत्र लोगों को मालूम न पड़ जाय, ये हमेशा उसको शंका रहती है। छलकपट की उम्र बहुत नहीं होती है।
और जितनी भी होती है वो व्यक्ति में बेचौनी बनाये रखती है। दुकानदार छल-कपट करता है, तो लेते समय, रखते समय उसको एक शंका तो रहती है। एक भय तो रहता ही है, अगर इनको मालूम पड़ गया तो क्या होगा। खूब छल-कपट होता है दुनिया में। आज कल तो नेता-अभिनेता, घर-परिवार सब जगह छलकपट होने लगा है। यहां तक डॅाक्टर और वैद्य भी छलकपट करने लगे हैं।
मायाचारी, छलकपट, बेईमानी समाज में बहुत चल रही है। ऐसे लोगों की समाज में कीमत कुछ नहीं होती। आपको मालूम पड़ गया कि वह व्यक्ति बेईमानी करता है। ज्यादा पैसा लेता है और कम सामान देता है। अब उसके दुकान पर जाना बंद कर देंगे। मालूम पड़ गया कि नौकर है वह बेईमानी करता है, जब हम दुकान पर नहीं रहते हैं तब भी लोगों को माल बेचता है, पैसा अपनी जेब में रखता है।
आप को उसका कपट मालूम पड़ गया तो उसको नहीं रखोगे। अब उसकी मायाचारी, छलकपट, बेईमानी मालूम पड़ती हैं तो सब उससे दूर रहते हैं। कपट करनेवाले का उसके सगे मां-बाप भी विश्वास नहीं करते हैं। ये बेईमानी करता है, हमको कुछ बोलता है, उसको कुछ बोलता है और कुछ करता है। और उससे विश्वास खत्म हो जाता है। इस व्यक्ति को कुछ काम नहीं बताना वह स्थिर नहीं है। उसमें सरलता नहीं हैं। इसलिए छलकपट नहीं करना। कपट करने से परिवार टूट जाते हैं। कोई कहेगा कि सरलता से क्या होता है।
सरल व्यक्ति की तो कोई कीमत नहीं होती, किन्तु ऐसा नहीं है । सरल व्यक्ति की बहुत कीमत होती है। उसकी कीमत परमात्मा की दृष्टी में होती है। सरल व्यक्ति हैं आप, आपकी कीमत दूसरा करे या ना करे। लेकिन अपने अंतरंग में शांति आती है कि मैंने कोई छलकपट तो नहीं किया, मैंने किसी से बेईमानी तो नहीं की। हम भी किसी से कपट न करें और कोई हमारे साथ कपट न करे ऐसा प्रयास होना चाहिए। स्वयं में मार्दव धर्म को प्रकट होने दें। स्वयं सुखपूर्वक जियें, दूसरों को सुख से जीने दें। यह तो जियो और जीने दो का सूत्र मंत्र है।
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’,
22/2, रामगंज, जिंसी, इन्दौर, 9826091247
mkjainmanuj@yahoo.com