बैठ भी जाओ संमुख मेरे,
बन जाओ ज़रा दर्पण तुम।
सजती जाऊं मैं प्रतिपल,
करो नैनों से श्रृंगार तुम।
बैठ भी जाओ संमुख मेरे
करो प्रीत भरी कुछ बातें तुम,
प्रेम सहित तुझे सुनती जाऊं
धरो अधरों पर मुस्कान तुम।
बैठ भी जाओ संमुख मेरे,
खोल दो दिल के राज़ तुम।
मैं तेरी हमराज़ बनूं ,
प्रेम का करो आगाज़ तुम।
बैठ भी जाओ संमुख मेरे,
मेरे उर करो स्वीकार तुम।
पुजारन तेरी मैं बन जाऊं,
मेरे बन जाओ आराध्य तुम।
दो पल जी लो साथ मेरे,
बन जाओ प्रतिपालक तुम।
दर्द में डूबी जीवन नैया,
थाम लो मेरी मेरी पतवार तुम।
अर्चना भारती नागेंद्र
पटना (सतकपुर सरकट्टी) बिहार