दी जाती हैं हजारों नसीहतें
शुरुआत से ही
यदि तुम एक लड़की हो ,
घूरती रहतीं हैं तुमको
असंख्य निगाहें
चोर दरवाजों और खिड़कियों से ,
आखिर क्यों नहीं जीने देते वो तुम्हें
तुम्हारे अल्हड़पन के साथ,,
आखिर अधिकार तो तुमको भी है न
उन बेपरवाह बारिशों में भीगने का,,है न !!
कुछ ज़्यादा ही जांचा परखा जाता है
उच्चता की कसौटियों पर
जब तुम एक स्त्री हो ,
सारे कायदे कानून सिर्फ तुम्हारे लिए,,
त्याग समर्पण की अपेक्षाएं सिर्फ तुमसे ही,,
'दोनों घरों' की जिम्मेदारी सिर्फ तुमसे ही,,
तुम्हारा अस्तित्व,, तुम्हारी अपेक्षाएं,,उनका क्या
इस पर भी यदि तुम कुछ लिखती हो
ये सारा समाज अलग ही मतलब निकाल लेता है
तुम्हारे हर एक "लिखे" का ,
कोमैंट्स नहीं,, डिसेक्शन किया जाता है
एक एक पंक्ति का ,
शब्दों के पीछे छिपाकर लिखनी पड़ती हैं
क्यों तुमको अपने मन की बातें !!
लड़कियों..कहो कितना खुश हो तुम
अपने सारे के सारे रतजगे एक डायरी को सौंपकर !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश