पठन लेख शैली मिली , अरु चिंतन अवधार।
स्वप्न मानविक सत्य हों, मानक शिक्षण सार।
अति विपन्न शिक्षा हुई, निर्धन झेले पीर,
पंक्ति गरीबी निम्न-तर, बालक पथ अँधियार।
श्रद्धा अब गुरु में नहीं, अध्यापक है दास।
तंत्र प्रबंधन रीत है, शिक्षण रूप सँभार।
सार्वभौम जो लक्ष्य है, मानव-धर्म सुवास,
सत्पथ से विचलित हुआ, दिखे नहीं आचार।
सत शिक्षित सब हों नहीँ , धूमिल तन मन काँति।
दोष-दृष्टि कुविचार बढे, ख़ुशी दूर अनुदार।
मानव-गुण अदृश्य हैं, शोधे युग मन क्रान्ति,
मैकाले की नीति ने, किया देश अपकार।
परिषद् उद्घोषित करे, कौमी यवन प्रपंच,
आँग्ल प्रविधि तालीम हो, द्वेष धरे बहुधार।
एक मन्त्र हम ग्रहण करें, हिन्दी भारत गीत,
शिक्षा में अनिवार्य हो, लेखन छंद प्रचार।
राष्ट्र धर्म जाग्रत रहे, ज्ञान कर्म का योग।
शोध-प्रविधि ओजस्विता, खोले अंतर्द्वार।
युवा-शक्ति नवचेतना, रखती निर्मल भाव,
रश्मि प्रवाहित हो रही, ज्ञान भरत संस्कार।
@ मीरा भारती,
पटना बिहार।