सब भूलते ही जा रहे

जहां भी देखो एक बात नज़र आती है,

भागम भाग लगी है दौड़ नज़र आती है,


इस अंधी सी  दौड़ में  सब भागे  हैं  जा  रहे,

पता नहीं मंजिल का रास्तों पर चलते जा रहे,


हर कोई  लगा  है अपने  ही जुगाड़  में यहां,

छोड़ पीछे अपनों को आगे निकलते जा रहे,


आज की बेहिसाब इस दुनियादारी में,

सब कहीं  ना  कहीं  खोए ही जा  रहे,


अपनों से मिलने का समय नहीं है पास,

बातें  भी  अब  करते  नज़र  ना आ रहे,


क्या हो गया है अब सबको धीरे धीरे यहां,

सब  ख़ुद  में  ही  ख़ुद  को समाते जा रहे,


वो मिलना मिलाना दुःख सुख में काम आना,

सब  के  सब  भूलते  ही अब  यहां  जा   रहे,


रामेश्वर दास भांन

करनाल हरियाणा