अवतार लिया हरि ने,
बन के कन्हैया,
जन्म दिया मां देवकी ने
कंस के बंदीगृह में।
हुआ करिश्मा ,
खुले स्वयं द्वार बंदीगृह के,
बेसुध हुए समस्त द्वारपाल,
पिता वासुदेव ,कंस के खौफ से,
बचाने नन्हें कान्हा को,
ले के चले अपने सखा के नगरी,
तनय उनका है स्वयं नारायण,
इस बात से अंजान।
रोक लिया यमुना मईया ने,
तेज धारे को,
शेषनाग के फन ने,
छतरी बन बारिश से बचाया
नन्हें कान्हा और वासुदेव को,
यशोदा, नन्द जी को सौंप बालगोपाल,
वापस गए बंदीगृह, वासुदेव जी।
दर्शन कर नन्हें कान्हा की
खुशी से झूमी यशोदा मईया,
जश्न मना गोकुल में,
अवतार ले के आए तारणहार,
बन के कन्हैया।
(स्वरचित)
सविता राज
मुजफ्फरपुर बिहार