प्यासी हूं मैं जन्म जन्म की,
आकर मेरी प्यास बुझा दो।
चौरासी के चक्र में फंसी हूं,
मोहन मुझको राह दिखा दो।
प्यासी हूं मैं मार्ग ढूंढती,
मिलता कोई पथ्ये नहीं।
इसका मतलब यह तो नहीं,
मेरा कोई गंतव्य नहीं।
बाग गई तो देखा फूल को,
भंवरे उन पर बैठे हैं।
उनको तुझ पर चढ़ाने का
मेरा कोई आश्य नहीं।
सांस तेरी धड़कन भी तेरी,
लगता मेरा अधिकार व्यर्थ है।
मैं मेरी में उलझी रहती,
लगता जीवन का सार व्यर्थ है।
आओ हाथ थाम लो गिरधर,
अपना निर्मल प्रकाश कर दो।
मेरे अंतर्मन में देखो,
अपनी निर्मल ज्योति भर दो।
ज्ञान प्रकाश जब मिल जाएगा,
मैं मेरा सब छूट जाएगा।
तुझ में मैं खो जाऊंगी,
जीवन सफल कर जाऊंगी।
प्यासी हूं मैं जन्म जन्म की,
तृप्ति मेरी हो जाएगी।
कृपा इतनी कर दो मोहन
रख दो अपना स्नेहिल हाथ
मधु बस तेरी हो जाएगी।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा