आम आदमी है बेचारा,
वक्त ने इसको बहुत मारा।
कभी फीस की चिंता खाए,
कभी दाल रोटी है सताए।
आम आदमी है बेचारा,
आना -जाना लगता भारी।
शादी ब्याह की बात छोड़ दो,
बेचारा जोड़े हरदम पाई -पाई।
उलझा रहता सारा जीवन,
लाओ लाओ घर की भारी।
आम आदमी है बेचारा,
परीक्षा दे देकर हारा।
कल साडी नई लाया है,
जंपर का तकाजा है।
किल्पो की बासी बात हुई,
सैंडल का आर्डर ताजा है।
बच्चों की फीस सताएं,
किताबों की मार रूलाएं।
आना जाना हुआ है भारी,
फैशन में है सब नर- नारी
महल,दुम्हले ,गाड़ी ,बंगले,
सब सपने से इसको लगते।
उलझा रहता दाल रोटी में।
आम आदमी है बेचारा।
किस के आगे हाथ पसारे,
कोई ना इसकी ओर निहारे।
बड़ी मुसीबत इसकी आई
आम आदमी है बेचारा।
चिंता इसकी नित बढ़ती ,
कुआं दूजी और खाई दिखती।
महंगाई की मार ने मारा,
सोच सोच कर यह तो हारा।
बदल दो दिन मेरे भी राम,
कर दो मेरा भी कल्याण।
हल बता दो इसका आज,
तभी बनेंगे बिगड़े काम।
आम से मुझको खास बना दो,
सारी चिंता आप मिटा दो।
आप हो सबके दाता राम,
कर दो बस अब तो कल्याण।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा