जन्म के साथ ही
मानव मन में
इच्छाएँ जन्म लेने लगती हैं।
चलती हैं जो
इंसान के मन में
ताउम्र इच्छाएँ जन्म लेती हैं।
पूरी होती हैं कुछ,
कुछ अधूरी ही रह जाती हैं।
इस पूर्ण, अपूर्ण के मध्य में,
अनुत्तरित कई प्रश्न होते हैं।
हल जिनके शायद इन्ही में
छिपे हुए रहते हैं।
क्यों मानव इच्छाओं व
प्रश्नों के जालों को,
मकड़ी सा बुनता
इनमें उलझता हैं।
पाता क्या हैं
सिर्फ एक इच्छा के
पूर्ण होने पर
उभरती दूसरी इच्छा,
और इनके साथ ही
प्रश्नों का अंबार।
फिर क्यों .....?
इच्छाओं व प्रश्नों का
सफर अंत तक भी
विराम नही लेता हैं।
क्यों...........?
कवयित्रि :-गरिमा राकेश 'गर्विता'
पता:-कोटा राजस्थान