"क्या आप गुलाब सी है"

न तू पराई है, न सरताज के परिवार को पराया समझ, उतरी है डोली जिस चौखट वही से अर्थी तेरी उठनी है, ससुराल नहीं तेरे सर का शामियाना है, चार दिवारी से बनें मकान को तुझे ही तो घरोंदा बनाना है। ससुराल हर बहू का अपना घर होता है, हर बहू का हक और अधिकार होता है पति के घर पर। 

ससुराल काला पानी की सज़ा इस कथन से अब कुछ परिवारों ने नाता तोड़ लिया है। अब बहूओं को कुछ घरों में, जी हाँ कुछ ही घरों में अद्दल बेटी की तरह रखने का रिवाज़ स्थापित हो चुका है। पर आज बात करते है की क्या बहू ने उस कथन को बदलने की कोशिश की है? आज भी लड़कियों के मन में बीज बोए जाते है कि ससुराल मतलब काला पानी की सज़ा, या सास और ननद मतलब ललिता पंवार या बिंदु की प्रतिकृति।

 माना कि ससुराल कंटीली बाड़ है, तो क्या आप नखशिख गुलाब सी है? आप ससुराल को अपना घर समझती है? सास-ससुर को माँ-बाप, देवर-ननद को भाई,बहन और रिश्तेदारों को अपना मानती है? शादी करने से पहले खुद को तराशिए, एक जिम्मेदारी उठाने के लिए खुद को तैयार करिए, सक्षम बनिए और दिल में ससुराल वालों के प्रति अपनत्व का भाव रखकर ससुराल की दहलीज़ पर कदम रखिए। 

बेशक था एक ज़माना जब ससुराल में बहूओं का कोई सम्मान ही नहीं था अब परिवर्तन भी आया है। पर अगर लड़कियां समझदार है और परायों को अपना बनाने का हुनर है उनमें तो ससुराल कैसा भी हो आपको दूध में शक्कर सी घुल कर सबको मीठा बनाना आना चाहिए है।

 लड़की जब ब्याही जाती है तो सिर्फ़ एक लड़के के साथ उसकी शादी नहीं होती, एक परिवार के साथ जुड़ती है, जहाँ आगे जाकर उसे उस परिवार की बुनियाद बनना होता है। स्त्री घर की शोभा है, मर्यादा है, स्तंभ भी है और नींव भी है। खुद को ढ़ालना होता है कई किरदारों में और सबको साथ लेकर आगे बढ़ना होता है। ईश्वर ने हर व्यक्ति को अलग-अलग स्वभाव दिया है उन सबको समझकर अपनेआप को उनके अनुरूप बनाना होता है। 

अपनी छवि पारदर्शी होगी तभी सामने वालों के गुण भी दिखाई देंगे। तो दिमाग में से ये निकाल दीजिए की ससुराल गेंदा फूल, पहले अपने आपको गुलाब सा बनाईये महक का गुण सबको अपनी ओर खिंचता है। ससुराल में बहू की एक जिम्मेदारी होती है। मायके में आप राजकुमारी होती है, और ससुराल में आप सबकी जरूरत। 

आपके उपर निर्भर होते है पति, छोटा सा देवर-ननद, और बुढ़े सास-ससुर। आपमें वो कला होनी चाहिए की आपकी वजह से इन सबके चेहरे पर हंमेशा खुशी खेलती रहे। हम दो हमारे दो परिवार नियोजन का स्लोगन है, नहीं की असल जीवन में आप पूरे परिवार को परे रखकर सिर्फ़ अपने पति और बच्चों को ही जिम्मेदारी समझे बाकी सब उनका जानें।

कहने का मतलब ये नहीं की आप ससुराल में नौकर या गुलाम हो। आप रानी हो एक जिम्मेदार व्यक्ति हो। जो कुछ भी करो अपना समझकर एक गरिमा के साथ, स्वाभिमान के साथ और आत्मविश्वास के साथ करो। बेवजह आपको प्रताड़ित करनेका हक किसीको मत दो। आपके काम में नुक्श निकालकर दो शब्द सुनाने का किसीको कोई मौका ही मत दो। ससुराल के रित, रिवाज़ और परंपराओं को अपनाकर सबका सम्मान करते खुद को एक मिसाल के तौर पर पेश करोगे तो ससुराल वाले कैसे भी हो आपको नोटिस किए बिना नहीं रहेंगे। 

आपको बोनसाई बनना है, अपनी मिट्टी से निकलकर दूसरे की ज़मीन में अपनी जड़े बनानी होती है। वक्त लगेगा पर नामुमकिन नहीं। ससुराल वालों के प्रति मन में परायों वाला भाव आपको पराया ही रखेगा। यूँ समझिए की आपको ससुराल वालों को साथ लेकर एक ऐसा घोंसला बनाना है जिसमें प्यार, अपनापन, खुशियाँ और मुस्कान ही हो कड़वाहट और वैमनस्य के लिए कोई जगह ही न हो। 

हर माँ को अपनी बेटी के मन में ससुराल के प्रति सकारात्मक विचारों के बीज बोने चाहिए। कभी बेटियों को ये मत कहिए की तुझे एक दिन पराए घर जाना है यह सीख, वह सीख। बल्कि यह कहिए की एक दिन तुझे अपने घर जाना है उस घर को सँवारना है, सजाना है ताकि ससुराल बेटी को अपना लगे और बिना डरे ससुराल के सारे रिश्तों को अपना सकें।

भावना ठाकर 'भावु' बेंगलोर