रिश्तों पर करो नाज, बने प्रेम का समाज,
सर्व धर्म कर्म काज,सुभग भाव भरिये |
प्रेम जगत सार जान, सुरभित स्वर भक्ति गान,
हर कोई हो समान, ध्यान हृदय धरिये ||
बैर करे हृदय घाव,रखे नहीं भेद भाव,
बढ़े सुभग प्रेम भाव, उत्सव मिल करिये |
सतत कर्म योग सार, भावना भरे अपार,
समाज ही धर्म धार, ईश्वर मन रहिये ||
आत्मबोध करो आज, खोल दो सारे राज,
वाणी हो अब इलाज, प्यार रंग भरिये |
प्रेम राग गीत सार, जोड़ना दिल के तार,
करो सदा जिन्हें प्यार, सदा संग रहिये ||
रहे समाज में प्यार, बने शिक्षा आधार,
चले न्याय मार्ग धार, धर्म श्रेष्ठ करिये |
उर विचार करें आज, हमसे ही है समाज,
सबपर हो सदा नाज, सत्य राह चलिए ||
मिलजुल कर रहो साथ, हाथों में लेकर हाथ
ईश चरण झुके माथ , ह्रदय प्रेम रखिये |
सबकी फिर मान जीत, त्याग दो सभी कुरीति,
प्रेम ज्ञान और रीति,ह्रदय भाव लखिये ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश