बाँट रहे हैं मुफ़्त रेवड़ी,
कुर्सी पाने की चाहत है।
देखके इनका रूप स्वार्थी,
भारत का मन आहत है ।।
खाकर मनभावन रेवड़ियाॅं,
जनमानस भी मस्त है।
मूर्ख नहीं चालाक हैं ये भी,
बिल्कुल मौकापरस्त हैं।।
नेता जनता दोनों खुश हैं,
पैसा जेब से नहीं गया है।
पद पाकर ये देश लूटते,
नहीं शर्म ना कोई हया है।।
हे मतदाता आँखें खोलो,
इनके झाँसे में ना आओ।
मीठा है मधुमेह बढ़ाता,
मुफ़्त रेवड़ी तुम ना खाओ।।
देश के हित में त्याग समर्पण,
सच्चे सपूत की जिम्मेदारी।
ऐसे नेता को चलता कर दो,
जो हैं कपटी भ्रष्टाचारी।।
मान बढ़ाओ भारत माँ का,
ध्यान से तुम करना मतदान।
देश की प्रगति हाथ तुम्हारे,
पहचानो खुद को नादान।।
रचनाकार
तुषार शर्मा "नादान"
राजिम
जिला - गरियाबंद छत्तीसगढ़
tusharsharmanadan@gmail.com