क्या ख़ता थी मेरी जो भूला दिया हैं तुम ने,
मुझ को कर किनारा,किनारे लगा दिया है तुम ने,
अब अकेले रहकर ही खुश रहो आबाद रहो,
मुझ को तो अब बर्बाद बना दिया तुम ने,
सोचा था तुम को पाकर बन जाएं ज़िन्दगी,
ठुकरा कर मुझ को ठिकाने लगा दिया तुम ने,
मंज़िल सी मिल गई थी तुम्हारे साथ रहकर,
ख़ता क्या हुई मुझ से जो दिल जला दिया तुम ने,
अब जीना सीख लेंगे तेरे बैगर भी हम,
छोड़ मेरा साथ दिल रुला दिया तुम ने,
ख़ुश था मैं तो तेरे संग संग चलकर,
रास्ते पर छोड़ मुझे अनजान बना दिया तुम ने,
कर दिया था ये दिल तेरे हवाले मैंने,
दिल ही से पूछ लेते ये क्या कर दिया तुम ने,
माना की तेरे संग रहकर अमीर था मैं,
देकर सिला जुदाई का कंगाल बना दिया तुम ने,
रामेश्वर दास भांन
करनाल हरियाणा