मेरी छोटी बहन राखी पर नख़रे दिखाती थी

मेरी छोटी बहन राखी पर नख़रे दिखाती थी 

राखी बांधकर सिर्फ दस रुपए ही लेती थी 

मेरी चकल्लस की बातें बहुत सुनती थी 

मेरा बड़बोलापन हंस कर टाल देती थी 


मातापिता मुझ पर बहुत प्यार निछावर करते थे 

मेरे माथे पर चिंता की लकीर सहन नहीं करते थे 

वात्सल्य प्यार दुलार की बारिश करते थे 

मुझ पर कोई आंच नहीं आने देते थे 


माता-पिता बहन यूं चले जाएंगे बात पता न थीं 

अकेला हो जाऊंगा गुमनाम बात पता न थीं 

चिट्ठी ना कोई संदेश ना जाने कौन सा देश 

जहां वह चले जाएंगे यह बात मुझे पता न थीं 


मैं बहुत ख़ुश था 

जब मेरे माता-पिता बहन हयात थे 

मुझे कोई फ़िक्र जिम्मेदारी चिंता नहीं देते थे 

मेरे माता पिता सब संभालते थे 


11 अगस्त 2022 राखी के उपलक्ष पर आपबीती दुख भरी दास्तां का लेखक- कर विशेषज्ञ साहित्यकार, कानूनी लेखक, चिंतक, एडवोकेट कवि किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र